ढ कहता है ढम-ढम-ढम,
देखो, खरगोश ढोल बजाए,
हिरण, गदहे, बंदर के संग,
छोटू हाथी भी गीत गाए,
सिंहराजा बनकर दूल्हा,
मन ही मन मुस्कुराएँ,
वनवासी सब बने बराती,
हुड़दंग मचाते जाएँ,
उधर सिंहनी के घर,
सब विवाह के गीत गाएँ,
सिंहनी भी दुल्हन बनकर,
आज बहुत इठलाए।
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देखो, खरगोश ढोल बजाए,
हिरण, गदहे, बंदर के संग,
छोटू हाथी भी गीत गाए,
सिंहराजा बनकर दूल्हा,
मन ही मन मुस्कुराएँ,
वनवासी सब बने बराती,
हुड़दंग मचाते जाएँ,
उधर सिंहनी के घर,
सब विवाह के गीत गाएँ,
सिंहनी भी दुल्हन बनकर,
आज बहुत इठलाए।
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ढ से ढक्कन, ढ से ढोल,
देखो गीदड़ की खुल गई पोल,
लाल रंग में वह नहाकर आया,
अपने को ईश्वर दूत बताया,
जंगल पर अपना अधिकार जताया,
खुद को सबका राजा बतलाया,
तभी जोर से बादल आया,
झम-झम-झम पानी बरसाया,
गीदड़ कुछ समझ न पाया,
बहुत जोर से अब वह भागा,
उसकी अब खुल गई थी पोल,
ढ से ढक्कन, ढ से ढोल।
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-प्रभाकर पाण्डेय
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देखो गीदड़ की खुल गई पोल,
लाल रंग में वह नहाकर आया,
अपने को ईश्वर दूत बताया,
जंगल पर अपना अधिकार जताया,
खुद को सबका राजा बतलाया,
तभी जोर से बादल आया,
झम-झम-झम पानी बरसाया,
गीदड़ कुछ समझ न पाया,
बहुत जोर से अब वह भागा,
उसकी अब खुल गई थी पोल,
ढ से ढक्कन, ढ से ढोल।
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-प्रभाकर पाण्डेय
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