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Thursday, July 10, 2008





कहता है प्यारे बच्चों,
सुन लो ध्यान से मेरी बातें,
ङ, ञ, ण हैं, हिंदी के ऐसे वर्ण,
जो किसी शब्द में पहले नहीं आते,
पर शब्दों में बने रहकर,
ये अपना भान सदा कराते।
अधिक बार ये आधा ही आते,
और अपनी जगह बिंदी दे जाते,
जैसे- चंचल, गंगा, ठंडा,
मंगल, मंजु व बनारसी पंडा,
पर ये अपने रूप में भी आते,
चञ्चल, ठण्डा जैसा भी लिखे जाते।
तुम सदा ध्यान से करो पढ़ाई,
जीवन होगा सदा सुखदायी।

-प्रभाकर पाण्डेय

14 comments:

रंजू भाटिया said...

आपका यह ब्लाग आज पहली बार देखा बहुत रोचक लगा बच्चो को हिन्दी भाषा से जोड़े रखने का एक बेहतरीन तरीका है यह
बहुत ही अच्छा आईडिया लगा मुझे यह ...

Anonymous said...

सुंदर बाल रचना।

Anonymous said...

http://shaishav.wordpress.com/2007/06/11/adultliteracyrhyme/

मुन्ना कुमार पाण्डेय said...

bahut hiachcha prayas hai aapka ...sadhuvaad

Asha Joglekar said...

beu warnmala samzati huee bachchon ki kawita likhne ki maine bhi kaee bar sochi par bas alas. Aaj aapka yeblog dekh kar badi prasannata huee.

Asha Joglekar said...

beu warnmala samzati huee bachchon ki kawita likhne ki maine bhi kaee bar sochi par bas alas. Aaj aapka yeblog dekh kar badi prasannata huee.

HBMedia said...

बहुत ही अच्छा लगा यह बाल रचना।

Sandhya said...

Beautiful!!

Unknown said...

बहुत ही सुंदर प्रभाकर जी. आपकी सारी रचनाएं काबिले तारीफ़ हैं.

मथुरा कलौनी said...

हिन्‍दी वर्णमाला सीखने-सिखाने के लिये बहुत ही रोचक विधि है। इस क्षेत्र में हम अँग्रेजी से उन्‍नीस पड़ते हैं। आपका प्रयास स्‍तुत्‍य है।
मथुरा कलौनी

मथुरा कलौनी said...

मुझे एक खुशगवार काम सौंपा गया था। जो मैंने पूरा कर लिया है। कृपया मेरे व्‍लॉग कच्‍चा चिट्ठापर जायें वहॉं आपके लिये एक तोहफा है।

कडुवासच said...

बिलकुल नयापन है, असरदार भी है,...... कुछ नया समावेश करें।

BrijmohanShrivastava said...

महोदय ,जय श्रीकृष्ण =मेरे लेख ""ज्यों की त्यों धर दीनी ""की आलोचना ,क्रटीसाइज्, उसके तथ्यों की काट करके तर्क सहित अपनी बिद्वाता पूर्ण राय ,तर्क सहित प्रदान करने की कृपा करें

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

तीर स्नेह-विश्वास का चलायें,
नफरत-हिंसा को मार गिराएँ।
हर्ष-उमंग के फूटें पटाखे,
विजयादशमी कुछ इस तरह मनाएँ।

बुराई पर अच्छाई की विजय के पावन-पर्व पर हम सब मिल कर अपने भीतर के रावण को मार गिरायें और विजयादशमी को सार्थक बनाएं।

 
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