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Thursday, March 4, 2010

ज्ञ से ज्ञानी........











ज्ञ कहता है प्यारे बच्चों,
अब आई है मेरी बारी,
शांत होकर बैठो सभी,
सुनो मेरी कहानी प्यारी।
ज् व ञ के मिलने से,
मैं अस्तित्व में आया,
वर्णमाला का अंतिम वर्ण,
और संयुक्ताक्षर कहलाया।
कुछ लोग मेरा उच्चारण,
'ग्य' करते जैसे विग्यान,
तो कुछ लोग मेरा उच्चारण,
'ज्न' करते जैसे विज्नान।
मेरा उच्चारण कैसे भी हो,
पर मैं ज्ञ ही तो हूँ,
मुझे तो प्रसन्नता है कि,
मैं वर्णमाला में हूँ।
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ज्ञ से ज्ञानी, ज्ञान सिखाए,
हित-अहित की बात बताए,
सबको अच्छी राह दिखाए,
समाज में सुख-शांति लाए।
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प्रभाकर पाण्डेय
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Sunday, February 28, 2010

त्र से त्रिशूल.....








त्र कहे मेरे प्यारे बच्चों,
अपने बारे में बताता हूँ,
मैं हूँ एक संयुक्ताक्षर,
ज्ञ के पहले आता हूँ,
त् और र के मिलने से,
मैंने अपना रूप है पाया,
मुझे बहुत खुशी है कि,
वर्णमाला ने मुझे अपनाया,
त्रिनेत्र, त्रिशूल, त्रिपुरारी में मैं,
मित्र, शत्रु में भी हूँ मैं,
आप सभी मुझे हैं पढ़ते,
कितना भाग्यशाली हूँ मैं।
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त्र से त्रिशूल, एक हथियार,
शंकरबाबा को इससे प्यार,
सदा हाथ में धारण करते,
भक्तों का कष्ट दूर हैं करते,
एक हाथ से डमरू बजाते,
बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते।
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_____प्रभाकर पाण्डेय_____





Friday, February 26, 2010

क्ष से क्षत्रिय.....


क्ष कहता प्यारे बच्चों,
अपने बारे में बताता हूँ,
वर्णमाला में भले हूँ मैं,
पर संयुक्ताक्षर कहलाता हूँ।
क् और ष के मिलन से,
मेरा यह रूप है आया,
क्षत्रिय, कक्षा जैसे शब्दों में,
मैंने अपने आप को पाया।
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क्ष से क्षत्रिय, रणयोद्धा कहलाए,
शत्रु को पीठ कभी न दिखाए,
देश सेवा का व्रत लिए,
कर्तव्य-मार्ग पर बढ़ता जाए।
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प्रभाकर पाण्डेय
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ह से हाथी.....


                 












कहता है, प्यारे बच्चों,
देखो आई प्यारी होली,
रंग खेलने निकल पड़ी है,
मस्तानों की टोली,
तुम भी जाओ, खेलो होली,
अबीर व गुलाल उड़ाओ,
पिचकारी में भर-भर के रंग,
तुम सबके ऊपर डालो,
खुशियाँ व आनंद मनाओ,
खेलो प्यार से होली,
सबके साथ रहो हिलमिल के,
व बोलो सदा मीठी ही बोली,
होली है हुड़दंग मचाओ,
खेलो जी-भरकर होली,
देखो आई रे आई,
अपनी प्यारी होली,
अपनी प्यारी होली।
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से हाथी, प्यारा हाथी,
मस्त चाल से चलता जाता,
इतना बड़ा पेट है इसका,
जो भी पाता, खाता जाता,

पर एक बात बताऊँ तुमको,
यह प्राणी है शाकाहारी,
कान इसके बड़े-बड़े हैं,
है सूड़ लंबी, प्यारी-प्यारी,
आओ प्यारे चुन्नू-मुन्नू,
करें आज हम इसकी सवारी। 
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आप सभी प्यारे नन्हे मुन्नों को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ......
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 आपका काकू....प्रभाकर गोपालपुरिया
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Friday, February 12, 2010

स से सरौता...




कहता है प्यारे बच्चों,
एक कहानी सुनाता हूँ,
इस कहानी के माध्यम से,
एकता का पाठ पढ़ाता हूँ।
एक किसान के थे दो लड़के,
वे सदा आपस में लड़ते,
इधर-उधर वे घूमा करते,
कोई काम नहीं थे करते।
किसान उनको बहुत समझाता,
अच्छी-अच्छी बात बताता,
पर वे अनसुनी कर देते,
अच्छी बात पर कान न देते।
एकदिन गाँव में एक साधू आए,
किसान के लड़कों को पास बुलाए,
बोले आपस में कभी न लड़ना,
सदा हिलमिलकर रहना।
तिनके-तिनके के मिलने से,
मोटा रस्सा बन जाता है,
और उस मोटे रस्से को,
हाथी भी तोड़ न पाता है।
जब तुममें रहेगा मेल,
तो रस्से जैसा बन जाओगे,
साथ-साथ तुम बात-बात में,
बड़ा काम भी कर जाओगे।
एकता की शक्ति को पहचानो,
और करो सदा अच्छे ही काम,
सदा बड़ो की बातें मानो,
लड़ना-झगड़ना कभी न जानो।।
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से सरौता, बड़े काम का,
कतर-कतर सुपाड़ी काटे,
दादाजी जब इसे चलाएँ,
कट-कट करके यह है बाजे।
गीली हो या सूखी सुपाड़ी,
यह कभी हार न माने,
हाथों से बस दबाते जाएँ,
ये तो बस काटना ही जाने।
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 प्रभाकर पाण्डेय
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Friday, January 1, 2010

ष से षट्कोण....









कहता है, प्यारे बच्चों,
देखो नया साल है आया,
अशांति का मिटा अँधेरा,
ढेर सारी खुशियाँ लाया।
सुख-शांति हो चारों ओर,
यह नव-संदेश है लाया,
लड़ाई-झगड़ों को करके खत्म,

यह प्रेम-भाईचारा बढ़ाने आया।
मन लगाकर करो पढ़ाई,
आगे बस तुम बढ़ते जाओ,
करके अच्छे-अच्छे काम,
सबके जीवन में खुशियाँ लाओ।।
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से षट्कोण, सुन लो मुन्नू,
तुम भी सुन लो, चुन्नू-टुन्नू,
पढ़ने से कभी जी ना चुराना,
किसी का भी दिल ना दुखाना,
करना सदा अच्छे ही काम,
तुम्हें मिलेगा उचित इनाम,
सब तुमसे प्यार करेंगे,
तेरा ही गुणगान करेंगे,
तुम होगे सबके दिल के प्यारे,
सुन लो मेरे राज-दुलारे।।
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_______प्रभाकर पाण्डेय________

Wednesday, December 30, 2009

श से शरीफा









कहे मेरे प्यारे बच्चों,
शब्दकोश क्या है, बताता हूँ,
और इसकी उपयोगिता को भी,
सरल शब्दों में समझाता हूँ।
जिसमें क्रम से रहते बहुत शब्द,
अधिकतर अपने अर्थों के साथ,
किसी-किसी में पर्याय भी होते,
तो किसी-किसी में मुहावरा भी साथ।
कुछ एक भाषा में ही होते,
जैसे- हिंदी-हिंदी शब्दकोश,
तो किसी-किसी में एक से अधिक भाषाएँ होती,
जैसे- हिंदी-अंग्रेजी कोश।
इन्हें कोश कहो या शब्दकोश,
पर ये हैं भाषा के अमूल्य कोष,
इनमें शब्दों का खजाना पाया जाता,
जो हम सबके बड़े काम आता।
यदि किसी शब्द का जानना हो अर्थ,
या दूसरी भाषा में उसके लिए प्रतिशब्द,
तो फटाफट शब्दकोश उठाओ,
और उस शब्द के बारे में सही जानकारी पाओ।।
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से शरीफा खाते जाओ,
रूको नहीं तुम चलते जाओ,
अपने काम करते जाओ,
बढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ।
नदी कभी नहीं रुकती है,
वह सदा बहती रहती है,
प्यासों की वह प्यास बुझाती,
अपने मार्ग पर बढ़ते जाती।
वह तुमसे भी यही कहती है,
पढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ,
अच्छे काम करते जाओ,
सबके जीवन में खुशियाँ लाओ।।
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__________प्रभाकर पाण्डेय_____________

Tuesday, November 3, 2009

व से वकील....







कहे, मेरे प्यारे बच्चों,
मेरे पास आओ ना,
मेरे अच्छे संदेशों को,
घर-घर में पहुँचाओ ना,
किसी को कभी दुख मत देना,
आपस में मिलजुल कर रहना,
सबसे प्यारा मानव धर्म,
तुम इसको अपनाओ ना,
कहे मेरे प्यारे बच्चों,
मेरे पास आओ ना।
तुम राम, कृष्ण को याद करो,
सबके दिल में प्यार भरो,
शिवा, प्रताप की इस धरती का,
फिर से तुम नवशृंगार करो,
करके अच्छे-अच्छे काम,
सबका दिल हर्षाओ ना,

कहे, मेरे प्यारे बच्चों,
मेरे पास आओ ना।।
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से वकील, वकालत है करता,
हरदम न्याय की पुस्तक है पढ़ता,
न्यायालय में जिर्रह वह करके,
दोषिओं को है सजा दिलवाता,
अपने इसी कामों के कारण,
निर्दोषों का वह आशीष पाता।।
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प्रभाकर पाण्डेय
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Monday, November 2, 2009

ल से लड्डू....









कहता है, प्यारे बच्चों,
वह भारत देश महान है,
जहाँ जन्म लिए कृष्ण व राम,
जहाँ बहतीं पावन नदियाँ अविराम,
शिवा, प्रताप, लक्ष्मी की गाथाएँ,
जहाँ लोग गाते सुबह व शाम हैं,
वह भारत देश महान है।
उत्तर में स्थित हिमालय,
जिसकी शान बढ़ाए,
भारत के गौरव-गाथा को,
जन-जन तक पहुँचाए,
वह भारत देश महान है।
सत्य, अहिंसा, दया, करुणा,
जिस देश का आधार है,
ऐसे प्यारे देश को,
बारंबार प्रणाम है,
वह भारत देश महान है।।
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से लड्डू, से लट्टू,
लड्डू खा रहा है पिंटू,
वह प्रतिदिन मंदिर जाता है,
लड्डू का प्रसाद चढ़ाता है,
दीन-दुखियों की सेवा करना,
वह अपना धर्म समझता है।
सत्य, अहिंसा, भाइचारे को,
वह अपनाता है,
अपने सद्गुणों के कारण ही,
वह अच्छा बालक कहलाता है।।
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प्रभाकर पाण्डेय

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Sunday, September 13, 2009

र से रस्सी...र से रथ...










कहता है, प्यारे बच्चों,
क्रिया-विशेषण क्या है बताऊँगा,
पर क्रिया-विशेषण बताने से पहले,
मैं तुमको 'क्रिया' समझाऊँगा।
'क्रिया' शब्द का है वह रूप,
जो कर्म होने को बताता है,
सीधे और साफ तौर पर,
काम का 'करना' 'होना' आता है।
खाना, पीना, रोना, सोना,
ये सब तो क्रियाएँ हैं,
धीरे-धीरे व तेजी से,
ये इनकी विशेषताएँ हैं।
क्रिया की विशेषता बतानेवाले,
क्रिया-विशेषण कहलाते हैं,
ये क्रिया के होने आदि का,
प्रकार आदि बताते हैं।
जैसे लगातार रोने में,
क्रिया-विशेषण है लगातार,
शब्दों को जानो और पहचानों,
इनकी लीला है अपरम्पार।।
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से रस्सी, बड़े काम की,
मोटी-पतली, कई प्रकार की,
बटकर ये बनाई जाती,
तृण-तृण से सजाई जाती,
बड़ा भी इसको तोड़ न पाए,
एकता की ये पाठ पढ़ाए।।
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से रथ, वाहन है होता,
घोड़ों से यह खींचा जाता,
सारथी रथ को है हाँकता,
रथ पर बहुत मजा है आता।।
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___________प्रभाकर पाण्डेय_______________


Saturday, August 22, 2009

य से यज्ञ..........











कहता है , प्यारे बच्चों,
आज विशेषण की बारी है,
शब्द ब्रह्म और ब्रह्म ही शब्द,
शब्दों की दुनिया निराली है।
जो संज्ञा की विशेषता बताए,
वह विशेषण कहलाता है,
संज्ञा के गुण आदि को बताने,
यह उसके साथ आता है।
छोटा, बड़ा, अच्छा, बुरा,
ये विशेषण कहलाते हैं,
इसी तरह के और भी शब्द,
इस श्रेणी में आ जाते हैं।
अगर तुम बनोगे अच्छे तो,
महान, कर्मठ जैसे विशेषण,
तुम्हारे नाम की शोभा बढ़ाएँगे,
अगर तुम बुरे बने तो,
नीच, आलसी जैसे विशेषण,
तुम्हें गर्त में ले जाएँगे।
अच्छा बनो, सच्चा बनो,
और तुम बनो महान,
धीर बनो तुम वीर बनो,
तुम हो इस देश की शान।।
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१.

से यज्ञ करते जाओ,
अच्छी तरह से पढ़ते जाओ,
एकदिन तुम बनोगे महान,
सब गाएँगे तेरा गुणगान।।

२.
से यज्ञ अगर है करना,
तो आओ हवनकुंड बनाएँ,
सुखी समिधा ला-लाकर,
इसमें हम खूब सजाएँ।
पुस्तक से मंत्र बोल-बोलकर,
आहुति इसमें देते जाएँ,
अच्छे कर्मों को कर-करके,
जीवन अपना सफल बनाएँ।।
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____प्रभाकर पाण्डेय____

Wednesday, August 19, 2009

म से मछली.....









कहता है, प्यारे बच्चों,
आज सर्वनाम की बारी है,
अपना ज्ञान बढ़ाने हेतु,
हमें पढ़ना रखना जारी है।
संज्ञा के बदले आनेवाले,
सर्वनाम कहलाते हैं,
और कई संज्ञाओं के बदले,
कभी एक ही सर्वनाम पाते हैं।
जैसे, सीता व राम के लिए,
'वह' भी सर्वनाम आता है,
ये संज्ञाएँ जो बताना चाहें,
वह खुद ही बता जाता है।
वह, हम, तुम, मैं, आप
आदि सर्वनाम कहलाते हैं,
इनका प्रयोग होने से ,
वाक्य सुंदर बन जाते हैं।।
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से मछली, सुन लो बच्चों,
वह जल की रानी कहलाती,
कभी-कभी उतराती जल में,
कभी-कभी है छिप जाती।
दिन-रात पानी में रहती वो,
वहीं खाती, वहीं सोती वो,
उसकी कथा निराली है,
वह ही जल की रानी है।।
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______________प्रभाकर पाण्डेय________________


Tuesday, August 18, 2009

भ से भक्त.........









कहता है प्यारे बच्चों,
संज्ञा के बारे में बताता हूँ,
आज थोड़ा अलग हटकर,
मैं व्याकरण तुम्हें पढ़ाता हूँ।
किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि,
के नाम को संज्ञा कहते हैं,
हर वस्तु, वह जगह संज्ञा है,
जिसमें हम सब रहते हैं।
दिल्ली, मुम्बई, कोलकता,
हैं संज्ञा के ही उदाहरण,
गंगा, सरस्वती, यमुना,
कुरान, गीता व रामायण।
पृथ्वी, पर्वत, तारे सारे,
सब संज्ञा कहलाते हैं,
मन के सारे भाव, दुख-सुख भी,
संज्ञा के अंतर्गत आते हैं।।
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से भगत, भक्ति है करता,
भगवन नाम जपा है करता,
सादगी से जीवन है जीता,
छल-कपट से दूर है रहता।
निस्वार्थ भाव से सेवा करता,
सत्य, अहिंसा के पथ पर चलता,
उसका जीवन सदा खुशहाल,
उसे ना छुए माया-जंजाल।।

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_____________प्रभाकर पाण्डेय_____________

ब से बकरी........












कहता है बकबक करना,
अच्छी बात नहीं है बच्चों,
बकवादी अच्छे नहीं समझे जाते,
लोगों के उपहास हैं बन जाते।
सत्य बोलो और मीठा बोलो,
सबके दिल में मिश्री घोलो,
इससे इतना सुख पाओगे,
सबके प्यारे बन जाओगे।।
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से बकरी, में-में करती,
हरी-हरी घास वह चरती,
उसके दूध को पीते बच्चे,
करते काम अच्छे-अच्छे।।
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__________प्रभाकर पाण्डेय___________

फ से फल..........









कहे मेरे प्यारे बच्चों,
तिरंगे की बात बताता हूँ,
26 जनवरी व 15 अगस्त को,
मैं भी इसे फहराता हूँ।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक,
फैला देश महान है मेरा,
यह अभिमान व शान है मेरा,
यह भगवान व ईमान है मेरा।
इस देश की शान तिरंगा,
लहर-लहर लहराता है,
इसके नीचे खड़ा होने से,
सर ऊँचा हो जाता है।।
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से फल, आम, अंगूर,
केला खा रहा एक लंगूर,
फल में मिलते पौष्टिक तत्त्व,
जिनसे शरीर में ऊर्जा आए,
बिना किए बरबाद समय,
हम अपना काम करते जाएँ।।
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__________प्रभाकर पाण्डेय__________


Monday, August 17, 2009

प से पतंग.........










कहता है, प्यारेलाल,

मेरे पास आओ तुम,
गुड्डी और मुन्नी को भी,
मेरे पास लाओ तुम,
मेरे पास हैं, कुछ खिलौने,
उन्हें लेकर जाओ तुम,
खेलो और खेलाओ सबको,
सबका मन बहलाओ तुम।।
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से पतंग, चलो उड़ाएँ,

हवा से इसकी बात कराएँ,
एक दूसरे से ऊपर ले जाएँ,
हँसी-खुशी हम मन बहलाएँ।।
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सर सर सर सर उड़ी पतंग,
हवा से बातें करती पतंग,
बड़ी पूँछ और हरी पतंग,
वह देखो वह मेरी पतंग।
मुन्नू और चुन्नू भी लाए,
बड़ी नीली और पीली पतंग,
आओ मिलजुलकर उड़ाएँ,
पीली, नीली, हरी पतंग।।
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प्रभाकर पाण्डेय
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न से नदी........न से नल










कहता है प्यारे बच्चों,
आलस्य कभी करना नहीं,
हर काम करो मन लगाकर,
बेवजह तुम डरना नहीं,
मंजिल तुम्हें मिल जाएगी,
बस कहीं रूकना नहीं,
जीत तुम्हें मिल जाएगी,
पीछे कभी हटना नहीं।
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से नदी, बस बहना जाने,
थकना, रूकना कभी न जाने,
प्यासों की वह प्यास बुझाए,
अपने मार्ग पर चलती जाए,
कंकड़-पत्थर में भी बहकर,
हर जगह पर हरियाली लाए,
इसलिए वह पूजी जाए,
और नदी मइया कहलाए,
हम उसपर बाँध बनाएँ,
और बिजली भी उपजाएँ,
हमारा कर्तव्य है यह बनता,
कि हम उसे प्रदूषण-मुक्त बनाएँ।।
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- प्रभाकर पाण्डेय
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Monday, June 29, 2009

ध से धनुष.........ध से धर्म









कहता है धमधूसर लाल,
मेरे पास आओ तुम,
गुड्डी व गुड़िया को भी,
मेरे पास लाओ तुम,
मेरे पास हैं कुछ खिलौने,
वे लेकर जाओ तुम,
खेलो और खेलाओ सबको,
सबका मन बहलाओ तुम।

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से धनुष से धर्म,
धर्म यानि सच्चा कर्म,
सदा सत्य को अपनाना,
छल, कपट को दूर भगाना,
सबके सेवा का लिए व्रत,
कर्तव्य मार्ग पर बढ़ जाना।
कभी ना करना बुरा कर्म,
सदा करना तुम सत्कर्म,
सभी धर्मों का है यह मर्म,
सबसे बड़ा है मानव धर्म।
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-प्रभाकर पाण्डेय
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