Custom Search

Friday, February 12, 2010

स से सरौता...




कहता है प्यारे बच्चों,
एक कहानी सुनाता हूँ,
इस कहानी के माध्यम से,
एकता का पाठ पढ़ाता हूँ।
एक किसान के थे दो लड़के,
वे सदा आपस में लड़ते,
इधर-उधर वे घूमा करते,
कोई काम नहीं थे करते।
किसान उनको बहुत समझाता,
अच्छी-अच्छी बात बताता,
पर वे अनसुनी कर देते,
अच्छी बात पर कान न देते।
एकदिन गाँव में एक साधू आए,
किसान के लड़कों को पास बुलाए,
बोले आपस में कभी न लड़ना,
सदा हिलमिलकर रहना।
तिनके-तिनके के मिलने से,
मोटा रस्सा बन जाता है,
और उस मोटे रस्से को,
हाथी भी तोड़ न पाता है।
जब तुममें रहेगा मेल,
तो रस्से जैसा बन जाओगे,
साथ-साथ तुम बात-बात में,
बड़ा काम भी कर जाओगे।
एकता की शक्ति को पहचानो,
और करो सदा अच्छे ही काम,
सदा बड़ो की बातें मानो,
लड़ना-झगड़ना कभी न जानो।।
______________________________
______________________________

 



से सरौता, बड़े काम का,
कतर-कतर सुपाड़ी काटे,
दादाजी जब इसे चलाएँ,
कट-कट करके यह है बाजे।
गीली हो या सूखी सुपाड़ी,
यह कभी हार न माने,
हाथों से बस दबाते जाएँ,
ये तो बस काटना ही जाने।
_______________________
__________________________
 प्रभाकर पाण्डेय
__________________________


 
www.blogvani.com चिट्ठाजगत