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Saturday, June 20, 2009

त से तकली.........त से तराजू









कहता है, प्यारे बच्चों,
तुम बनो सबके दुलारे,
अच्छे काम करते जाना,
मेहनत से पढ़ते जाना।
सूर्य जैसा तुम चमकोगे,
गुलाब जैसा तुम महकोगे,
प्यार करे तुम्हें दुनिया सारी,
तुम्हारी सूरत लगे सबको प्यारी।।
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१.
से तकली, से तराजू,
तराजू से वह तौल रहा काजू,
तकली से सूत काता जाता,
तराजू तौलने के काम आता।

२.

से तकली, नाच रही है,
देखो सूत वह कात रही है,
जैसे-जैसे नाचते जाती,
वैसे-वैसे सूत कातते जाती।
माँ उस सूत को लपेटा करती,
और उसका गुच्छा बनाती,
इस सूत से जनेऊ भी बनते,
जिसे हम कुछ लोग पहनते।।
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-प्रभाकर पाण्डेय
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चित्र साभार
webdunia.com
shabdavali.blogspot.com
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4 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

बाल साहित्य को समृद्ध कर आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। अभिनन्दन।

समयचक्र said...

बहुत सुन्दर रचना है प्रभाकर जी . बधाई.

आशिष आल्मेडा (Ashish) said...

बहोत खूब. पांडेज़ी आप आकड़ो के बारे मे भी लिखिए.

Saurabh said...

its really nice to see the old pattern of learning hindi varnmala, which is vanished from current teaching methodology.
Great efforts.

Regards
Saurabh Pandey

 
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