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Sunday, March 9, 2008

ओ --- ओखल












कहे मेरी भी सुनो,
एक, दो, तीन, गिनती गिनो,
सदा समय पर खाना खाओ,
ठीक समय पर पढ़ने जाओ,
कभी ना करो किसी से लड़ाई,
मिलजुलकर तुम रहो भाई।










ओखल में मूसल को तान,
रजिया कूट रही है धान,
सभी काम वह खुद ही करती,
माँ-पिता की सेवा करती,
पढ़ने प्रतिदिन जाया करती,
अच्छे नंबर लाया करती,
गुरुजन उसकी करें बढ़ाई,
बच्चों तुम भी करो पढ़ाई।

-प्रभाकर पाण्डेय

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