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Saturday, March 1, 2008

उ ---- उल्लू












कहता है प्यारे बच्चों,
उल्लू मत कहलाना तुम,
सोच-समझकर काम करना,
आपस में तुम कभी न लड़ना,
पढ़-लिखकर बनना होशियार,
सभी करेंगे तुमको प्यार,
उल्लू नहीं कहलाओगे,
सबके प्यारे बन जाओगे।









उल्लू दिन में देख न पाए,
लक्ष्मी का वाहन कहलाए,
रात में निकले घर से बाहर,
इधर-उधर खूब मौज मनाए।
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जो सीधी बात समझ न पाए,
बिन सोचे समझे दाँत दिखाए,
खर्च होने से दिमाग बचाए,
वह व्यक्ति भी उल्लू कहलाए।
-प्रभाकर पाण्डेय

1 comment:

Unknown said...

आपने बहुत अच्छी कविता लिखी है। बहुत ही सिम्पल सब्जेक्ट के बावजूद आपने बड़ी बात कही है। आप मेरे अग्रज हैं और लेखन के एरिया में मेरा मार्गदर्शन करें।

आपका अनुज
विनय

 
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